छत्तीसगढ़ के रायपुर निकट विचक्षण जैन विद्यापीठ में परयूषण पर्व के अवसर पर भगवान जन्म वाचन परम पूज्य विराटसागर जी महाराज साहब, परम पूज्य विनम्र सागर जी महाराज साहब,परम पूज्य वैभवसागर जी महाराज की पावन निश्रा में महोत्सव अति उत्साह पूर्वक मनाया गया।
इस अवसर पर माता त्रिशला के द्वारा देखे गए चौदह स्वप्नों की बोलियां श्रद्धालुओ द्वारा रुपयों में ली जाती है जिसका उपयोग मंदिर की व्यवस्था इत्यादि में खर्च कर किया जाता है, लेकिन विद्यापीठ के विधार्थियों ने जो बोलियां ली वह सम्पूर्ण भारत मे समाज के लिए उत्कृष्ट उदाहरण बन गयी।
संस्था में अध्ययनरत विद्यार्थियों ने कुछ नियम पालन की बोलियां प्रतिदिन व प्रति वर्ष के अनुसार ली, जैसे कि प्रथम स्वप्न की बोली ११ विधार्थियों ने एक वर्ष के लिए- एक दिन में तीस मिनट से ज्यादा टी वी नहीं देखने की ली। दुसरे स्वप्न की बोली २१ विधार्थियों ने इस नियम से ली कि वो कहीं भी रहें अपने कमरों की सफाई स्वयं करेंगे। तीसरे स्वप्न की बोली १४ बच्चों ने इस नियम के अनुसार ली कि वो तीस वर्षों तक किसी को अपशब्द नहीं कहेंगे इसके अतिरिक्त अन्य नियम जैसे प्रतिदिन संध्या प्रभु की आरती करना, दुसरो के चिढ़ाने से अप्रभावित रहना, स्वयं के कार्य स्वयं करना,रात में सोते वक्त सुबह उठते वक्त नवकार मंत्र गिनना, मोबाइल पर गेम नहीं खेलना, दोस्तों को नहीं चिढ़ाना, पर्यावरण की सुरक्षा करना,सोशल मीडिया का उपयोग नहीं करना, बड़ों की बात नहीं काटना,तथा खुद की त्रुटियों को स्वीकार करना आदि की बोली अनेक विद्यार्थियों ने ली।इस अवसर पर छात्राओं ने नृत्य के माध्यम से चौदह स्वप्नों की बोलियों पर शानदार प्रस्तुति दी कार्यक्रम का संचालन भी स्कूली बच्चों ने किया।
संस्था के शैक्षणिक निदेशक डॉ वीरेंद्र नाहर ने बताया कि– विचक्षण जैन विद्यापीठ में चार विधाओं में बच्चों की गतिविधियां संचालित होती है एक- शैक्षणिक,दो-तीन धार्मिक शिक्षा एवं क्रियायें, तीन-खेलकूद इत्यादि तथा चार- अच्छी आदतें, नैतिक मूल्यों के विकास की शिक्षा। उन्होंने आगे बताया कि-पिछले वर्ष प्रारंभ हुये इस संस्था ने मात्र एक वर्ष के कार्यकाल में सम्पूर्ण भारत के जैन जगत में एक विशिष्ट पहचान बना ली है ।आज देश के अनेक प्रान्तों के बच्चे आकर छात्रावास में रहते हुए शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
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